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पृथ्वी की उत्पत्ति एवं संरचना
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Georges Louis Leclerc (Comte de Buffon) बफन
पृथ्वी की उत्पत्ति एवं आयु के सम्बन्ध में समय -समय पर विभिन्न विद्वानों ने अपने विचार प्रस्तुत किये। सर्वप्रथम फ्रांसीसी वैज्ञानिक कामते-द-बफन ने 1749 ई. में पृथ्वी की उत्पत्ति के विषय में तर्कपूर्ण परिकल्पना प्रस्तुत की। जिसे पुच्छलतारा परिकल्पना के नाम से जाना जाता है
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पृथ्वी की उत्पत्ति वर्तमान में पृथ्वी व अन्य ग्रहों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में दो प्रकार की संकल्पना प्रचलित हैं। अद्वैतवादी संकल्पना (Monistic Concept)--- इस परिकल्पना को "Parental Hypothesis" भी कहा जाता है। इसमें एक ही तारे से सम्पूर्ण ग्रहों की उत्पत्ति को स्वीकार्य किया गया है। अद्वैतवादी संकल्पनाओं में निम्नलिखित संकल्पनाएँ प्रमुख हैं? द्वैतवादी संकल्पना (Dualistic Concept)--- इस विचारधारा के अनुसार ग्रहों की उत्पत्ति दो तारों के संयोग से मानी जाती है। इसलिये इस परियोजना को "Bi-Parental Hypothesis" भी कहते हैं।
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अद्वैतवादी संकल्पना (Monistic Concept)
अद्वैतवादी संकल्पनाओं में निम्नलिखित संकल्पनाएँ प्रमुख हैं? 1. कांट की वायव्य राशि संकल्पना (Kant's Gaseous Hypothesis) 2. लाप्लास की निहारिका परिकल्पना (Nebular Hypothesis of Laplas) 3.उल्कापिण्ड परिकल्पना (लॉकियर 1919 )
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कांट की वायव्य राशि संकल्पना (Kant's Gaseous Hypothesis)
जर्मन दार्शनिक कांट ने 1755 ई. में न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियमों पर आधारित वायव्य राशि परिकल्पना का प्रतिपादन किया। इसके अनुसार एक तप्त एवं गतिशील निहारिका से कई गोल छल्ले अलग हुए, जिसके शीतलन से सौरमण्डल के विभिन्न ग्रहों का निर्माण हुआ। किन्तु इस सिद्धान्त में काण्ट ने गणित के गलत नियमों का प्रयोग किया, क्योंकि यह सिद्धान्त कोणीय संवेग के संरक्षण के नियम का पालन नहीं करता है। Immanuel Kant
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लाप्लास की निहारिका परिकल्पना (Nebular Hypothesis of Laplas)
फ्रांसीसी वैज्ञानिक लाप्लास ने 1796 ई. में बताया कि एक विशाल तप्त निहारिका से पहले एक ही छल्ला बाहर निकला जो कई छल्लों में विभाजित हो गया तथा ये छल्ले अपने पितृ छल्ले के चारों ओर एक दिशा में घूमने लगे। बाद में इन्हीं के शीतलन से ग्रहों का निर्माण हुआ। जिनमें पृथ्वी भी शामिल है। परन्तु इस परिकल्पना के अनुसार सभी ग्रहों के उपग्रहों को एक ही दिशा में घूमना चाहिए। लेकिन शनि व बृहस्पति के उपग्रह विपरीत दिशा में भ्रमण करते हैं।
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द्वैतवादी संकल्पना (Dualistic Concept)-
इस विचारधारा के अनुसार ग्रहों की उत्पत्ति दो तारों के संयोग से मानी जाती है। इसलिये इस परियोजना को "Bi-Parental Hypothesis" भी कहते हैं। इससे सम्बन्धित सिद्धान्त निम्नलिखित हैं। a-ग्रहाणु परिकल्पना (Planetesimal Hypothesis) b-ज्वारीय परिकल्पना (Tidal Hypothesis) c-द्वैतारक परिकल्पना (Binary Star Hypothesis) अंतरतारक धूल परिकल्पना (Inter Steller Dust Theory)- e-नव तारा परिकल्पना ( Nova Hypothesis)
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ग्रहाणु परिकल्पना (Planetesimal Hypothesis)
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन चैम्बरलिन तथा मौल्टन ने 1905 ई. में किया था। इस परिकल्पना के अनुसार ग्रहों का निर्माण तप्त गैसीय निहारिका से नहीं वरन ठोस पिण्ड से हुआ है। इस सिद्धान्त के अनुसार जब सूर्य के पास कोई अन्य विशाल तारा पहुँचा तो उसकी आकर्षण शक्ति के कारण सूर्य के धरातल से असंख्य कण अलग हो गये। यही कण आपस में मिलकर ग्रहों के निर्माण का कारण बने।
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ज्वारीय परिकल्पना (Tidal Hypothesis)
इस परिकल्पना का प्रतिपादन जेम्स जीन्स ने 1919 में किया था। इसके अनुसार सौर मंडल का निर्माण सूर्य एवं एक अन्य तारे के संयोग से हुआ है। सूर्य के निकट इस तारे के आने से सूर्य का कुछ भाग ज्वारीय उद्भेदन के कारण फिलामेंट के रूप में खिंच गया तथा बाद में टूट कर सूर्य का चक्कर लगाने लगा। यही फिलामेंट सौर मंडल के विभिन्न ग्रहों की उत्पत्ति का कारण बना। यह परिकल्पना ग्रहों और उपग्रहों के क्रम, आकार व संरचना की व्याख्या करती है।
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द्वैतारक परिकल्पना (Binary Star Hypothesis)
इस सिद्धान्त के प्रतिपादक एच. एन. रसेल थे। यह परिकल्पना सूर्य और ग्रहों के बीच की दूरी तथा ग्रहों के कोणीय संवेग की व्याख्या करने में समर्थ है।
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अंतरतारक धूल परिकल्पना (Inter Steller Dust Theory)
इस परिकल्पना को 1943 में रूसी वैज्ञानिक ऑटो श्मिड ने दिया था। इसके अनुसार ग्रहों की उत्पत्ति गैस व धूल के कणों से मानी गई है। जब सूर्य आकाश गंगा के करीब से गुजर रहा था तब उसने अपनी आकर्षण शक्ति से कुछ गैस मेघ व धूल के कणों को अपनी ओर आकर्षित किया, जो सामूहिक रूप से सूर्य की परिक्रमा करने लगे। इन्हीं धूल के कणों से पृथ्वी एवं अन्य ग्रहों का निर्माण हुआ। किन्तु यह सिद्धान्त यह बताने में असमर्थ रहा कि सूर्य ने गैस व धूल के कणों को आकर्षित कैसे किया।
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नव तारा परिकल्पना ( Nova Hypothesis)
इस परिकल्पना के प्रतिपादक फ्रेड होयल व लिटिलटन थे। उन्होंने अपनी पुस्तक "Nature of the Universe" में 1939 ई. में नाभिकीय भौतिकी से सम्बन्धित सिद्धान्त देते हुए यह परिकल्पना प्रस्तुत की।
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