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प्रश्न - पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -

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विषय पर प्रस्तुति: "प्रश्न - पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -"— प्रस्तुति प्रतिलेख:

1 प्रश्न - पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
प्रश्न - पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए - मन-मोहिनी प्रकृति की गोद में जो बसा है , सुख स्वर्ग-सा जहाँ है, वह देश कौन-सा है ? जिसका चरण निरंतर रत्नेश धो रहा है , जिसका मुकुट हिमालय , वह देश कौन-सा है ? नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं , सींचा हुआ सलोना , वह देश कौन-सा है ? जिसके बड़े रसीले फल-कंद-नाज-मेवे , सब अंगने सजे हैं , वह देश कौन-सा है ? जिसके सुगंध वाले सुंदर प्रसून प्यारे , दिन-रात हँस रहे हैं , वह देश कौन-सा है ? मैदान-गिरि-वनों में हरियाली लहकतीं , आनंदमय जहाँ है , वह देश कौन-सा है ? जिसके अनंत धन से धरती भरी पड़ी है , संसार का शिरोमणि , वह देश कौन-सा है ? प्रथम चार पंक्तियों में कवि देश की क्या विशेषता बताता है ? यहाँ की नदियाँ कैसी धारा बहा रही हैं ? इस देश का प्राकृतिक सौंदर्य कैसा है ? यह देश संसार का शिरोमणि क्यों है ?

2 उत्तर :- प्रथम चार पंक्तियों में इस देश की विशेषता बताते हुए कहा गया है कि यह प्रकृति की गोद में बसा है। इस देश में स्वर्ग जैसा सुख मिलता है। इस देश के चरणों को निरंतर समुद्र धोता रहता है। हिमालय इस देश का मुकुट है। इस देश की नदियाँ धरती पर अपनी अमृत धारा बहाती रहती हैं जिसके कारण यह धरती उपजाऊ बनी रहती है। इस देश का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है। यहाँ बड़े सुंदर फूल खिलते हैं। यहाँ के मैदानों , पर्वतों तथा वनों में हरियाली लहकती रहती है। यह संसार का शिरोमणि इसलिए है क्योंकि इस देश की धरती अनंत धन-संपदा से भरी पड़ी है। यह देश विश्व में सर्वश्रेष्ठ है।

3 प्रश्न - पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
प्रश्न - पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए - हम अनिकेतन , हम अनिकेतन ! हम तो रमते राम , हमारा क्या घर , क्या दर , कैसा वतन ? अब तक इतनी यों ही काटी , अब क्या सीखें नव परिपाटी कौन बनाए आज घरौंदा हाथों चुन-चुन कंकड़-माटी ठाठ फ़कीराना है अपना , बाघंबर सोहे अपने तन । देखे महल , झोंपड़े देखे , देखे हास-विलास मज़े के संग्रह के सब विग्रह देखे , जँचे नहीं कुछ अपने लेखे लालच लगा कभी पर हिय में मच न सका शिणित उद्वेलन । हम जो भटके अब तक दर-दर , अब क्या ख़ाक बनाएँगे घर हमने देखा सदन बने हैं लोगों का अपनापन लेकर हम क्यों सनें ईंट-गारे में ? हम क्यों बनें व्यर्थ में बेमन ? ठहरे अगर किसी के दर पर , कुछ शरमाकर कुछ सकुचाकर तो दरबान कह उठा , बाबा , आगे जा देखो कोई घर हम रमता बनकर बिचरे पर हमें भिक्षु समझे जग के जन । (१) कवि अपने को कैसा बताता है और क्यों ? (२) कवि का अब तक का जीवन कैसा कटा है ? (३) कवि अपना (सदन) घर बनाने को इच्छुक क्यों नहीं है ? (४) कवि का अब तक का अनुभव कैसा रहा है ?

4 उत्तर :- कवि अपने आप को अनिकेतन अर्थात बिना घर – बार का बताता है। वह ऐसा इसलिए कहता है क्योंकि वह तो रमता राम है अर्थात वह घूमता-फिरता रहता है। उसका न तो कोई घर है , न कोई ठिकाना और न ही उसका कोई वतन (देश) है। कवि ने अब तक ऐसे ही घूमने-फिरने में अपनी ज़िंदगी बिता दी है। वह अब किसी नई परिपाटी को नहीं सीखना चाहता है। उसका ढंग तो फकीराना है। कवि अपना घर बनाने का इच्छुक इसलिए नहीं है क्योंकि वह किसी बंधन में बँधकर नहीं रहना चाहता। उसने देखा है कि जिन लोगों ने संग्रह किया है वहाँ विग्रह अधिक है। वह घर बनाने के झंझट में पड़ना ही नहीं चाहता। कवि का अब तक का अनुभव बड़ा कटु रहा है। घर बनाने के चक्कर में लोगों का अपनापन चला गया है।लोगों ने उसे भिखारी ही समझ लिया अर्थात घर बनाकर लोग घमंडी हो गए हैं।


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