विज्ञान शिक्षण (Science Teaching) Semester – 1 ज़िला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान मुजफ्फरनगर District Institute of Education and Training MuzaffarNagar (U.P.) विज्ञान शिक्षण (Science Teaching) Semester – 1
गति एवं बल ( Motion and Force) Chapter - 9 गति एवं बल ( Motion and Force)
विषय सूचि (List of Contents) गति (MOTION) गति के प्रकार (Types Of Motion) 1. ऋजुरेखीय गति (Translatory motion) 2. घूर्णन गति/चक्रीय गति (Rotatory motion) 3. कम्पनीय गति/दोलन गति (Oscillatory/vibratory motion) 4. वृत्तीय गति (Circular motion) समान गति तथा असमान गति (Uniform Motion and Non-Uniform Motion) न्यूटन के गति के नियम (Newton’s Laws Of Motion) 1. गति का पहला नियम (First Law Of Motion) 2. गति का दूसरा नियम (Second Law Of Motion) 3. गति का तीसरा नियम (Third Law Of Motion) गुरूत्व (Gravity) न्यूटन का सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नियम (Newton’s Universal Law Of Gravitation) बल (Force)
बलों के प्रकार ( Types of Forces) 1. पेशीय बल (Muscular force) 2. गुरूत्वाकर्षण बल (Gravitational force) 3. चुम्बकीय बल (Magnetic force) 4. विद्युतीय बल (Electrostatic force) 5. घर्षण बल (Frictional force) बल के मात्रक (Units Of Force) जड़त्व (Inertia) संवेग (Linear Momentum) आवेग / बल का आवेग (Impulse) घर्षण बल (frictional force) घर्षण बल के प्रकार (Types of Frictional force) 1. स्थैतिक घर्षण बल (Static friction) 2. गतिज घर्षण बल (Kinetic Friction) घर्षण के लाभ घर्षण बल की हानिया
गति (MOTION) यदि कोई वस्तु अन्य वस्तुओं की तुलना में समय के सापेक्ष में स्थान परिवर्तन करती है, तो वस्तु की इस अवस्था को गति (Motion) कहा जाता है। सामान्य शब्दों में गति का अर्थ - वस्तु की स्थिति में परिवर्तन गति कहलाती है। कुछ वस्तुओं में समय के साथ–साथ उनकी स्थिति में परिवर्तन होता है, जबकि कुछ अपने स्थान पर ही स्थित रहती हैं। उदाहरण स्वरूप हमारे सामने से जाती रेलगाड़ी, मोटर आदि की स्थिति में समय के साथ परिवर्तन होता है। जबकि मेज पर पड़ी किताब आदि में परिवर्तन नहीं होता है। इससे पता चलता है कि हमारे चारों ओर स्थित वस्तुएँ या तो स्थिर हैं या गतिमान हैं। परन्तु वस्तु की यह स्थिरता अथवा गति हमारे सापेक्ष है, क्योंकि हो सकता है कि जो वस्तुएँ हमें गति में दिखाई देती हैं, किसी और दृष्टा की दृष्टि से वह स्थिर हों। जैसे : - हमारे सामने से रेलगाड़ी जा रही है तो हमारी अपेक्षा से रेलगाड़ी की स्थिति में समय के साथ परिवर्तन होता है, इसीलिए हम कहते हैं कि रेलगाड़ी गति में है, परन्तु उसमें बैठे यात्री की अपेक्षा से गाड़ी की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता है। अतः उस यात्री की अपेक्षा रेल स्थिर है। अतः स्थिरता अथवा गति की अवस्थाओं का वर्णन सापेक्ष होता है।
गति के प्रकार (Types Of Motion) 1. ऋजुरेखीय गति (Translatory motion) जब कोई वस्तु एक सीधी रेखा में गति करती है तो ऐसी गति को स्थानान्तरीय गति कहते हैं। स्थानान्तरीय गति को रेखीय गति भी कहा जाता है। जैसे सीधी पटरियों पर चलती रेलगाड़ी। स्थानान्तरीय गति में मूल बिंदु से दायीं ओर की दूरी को धनात्मक और बायीं ओर की दूरी को ऋणात्मक रूप में व्यक्त किया जाता है। ऋजुरेखीय गति दो प्रकार की होती है । 1.1 सीधी सरल रेखीय गति(Rectilinear motion): जब कोई वस्तु सीधी सरल रेखा के अनुदिश गति करती है। तो उसकी गति सीधी सरल रेखीय गति कहलाती है। सैनिको की सीधी परैड, चीटियों का एक पंक्ति म चलना , पत्थर का गिरना , चलती हुई नाव सीधी सरल रेखीय गति के उदहारण है ।
1.2 वक्र रेखीय गति (curvilinear motion) जब कोई वस्तु वक्र रेखा के अनुदिश गति करती है तो उसकी गति वक्र रेखीय गति कहलाती है एक ढलान पर किसी बच्चे का फिसलन वक्र रेखीय गति कहलाती है।
2. घूर्णन गति/चक्रीय गति (Rotatory motion) जब कोई पिण्ड किसी अक्ष के परितः घूमता है तो ऐसी गति को घूर्णन गति कहते हैं। जैसे पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमाना, घूमते लट्टू की गति, चलते हुए पंखे की गति आदि।
3. कम्पनीय गति/दोलन गति (Oscillatory/vibratory motion) जब कोई किसी निश्चित बिन्दु के इधर–उधर गति करती है तो उसे कम्पनीय गति कहते हैं। जैसे घड़ी की लोलक का अपनी मध्यमान स्थिति के दोनों ओर दोलन करना।
4. वृत्तीय गति (Circular motion) जब कोई वस्तु किसी वृताकार मार्ग पर गति करती है, तो उसकी गति को वृत्तीय गति कहते हैं. यदि वह एक समान चाल से गति करती है तो उसकी गति को एक समान वृत्तीय गति कहते हैं
समान गति तथा असमान गति (Uniform Motion and Non-Uniform Motion)
गति के प्रकार
न्यूटन के गति के नियम (Newton’s Laws Of Motion) ये नियम सर आइजैक न्यूटन के द्वारा सर्वप्रथम प्रतिपादित किये गये थे तथा इनका प्रथम प्रकाशन 5 जुलाई, 1687 को हुआ था। गति का पहला नियम (First Law Of Motion) न्यूटन के गति के पहले नियम के अनुसार, "यदि कोई वास्तु विरामावस्था में है, तो यह विरामावस्था में ही बनी रहेगी और यदि यह गति की अवस्था में है, तो गति की अवस्था में ही रहेगी, जब तक की उस पर कोई बाह्य बल लगाकर उसकी वर्तमान स्थिति में परिवर्तन न किया जाये l” इस नियम से गैलिलियों के जड़ता (inertia) की परिकल्पना को मान्यता मिलती है इसीलिये इसे जड़त्व का नियम(Law of Inertia) भी कहा जाता है।
गति का दूसरा नियम (Second Law Of Motion) न्यूटन के गति के दूसरे नियम के अनुसार, “किसी भी पिंड की संवेग परिवर्तन की दर लगाये गये बल के समानुपाती होती है और उसकी (संवेग परिवर्तन की) दिशा वही होती है जो बल की होती है।” माना, m द्रव्यमान की वस्तु F बल लगने पर बल की दिशा में वस्तु में a त्वरण उत्पन्न होता है l वस्तु के संवेग में परिवर्तन = p2 – p1 वस्तु के संवेग में परिवर्तन = mv – mu वस्तु के संवेग में परिवर्तन = m × (v – u). वस्तु के संवेग परिवर्तन की दर= m × (v - u)/t
गति के दूसरे नियम के अनुसार, F ∝ m × (v - u) /t F = km × (v - u)/ t ------------------(i) { यहाँ, [ (v - u)/ t ] = त्वरण (a)} F = kma जहाँ k एक स्थिरांक हैl समान्यता: बल का मात्रक इस प्रकार चुना जाता है की एकांक बल एकांक द्रव्यमान की वस्तु में एकांक त्वरण उत्पन्न कर सकेl यदि m=1 किलोग्राम, a=1 मीटर/सेकंड2 हो तो वस्तु पर लगाया गया बल 1 न्यूटन होगा l इन मानो को समीकरण (i) में रखने पर , 1=k×1×1 k=1 इस प्रकार समीकरण (i) से , F = m.a बल = द्रव्यमान × त्वरण
गति का तीसरा नियम (Third Law Of Motion) इस नियम के अनुसार, “प्रत्येक क्रिया के फलस्वरूप समान और विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है, यदि कोई वस्तु किसी अन्य वस्तु पर बल लगाती है तो वह वस्तु भी पहली वस्तु पर विपरीत दिशा में बल लगाती हैl”, इन दोनो बलों में से लगने वाले बल को क्रिया तथा दूसरे बल को प्रतिक्रिया कहा जाता है क्रिया प्रतिक्रिया के अनेक उदाहरण है, i. बंदूक से गोली निकलने पर, पीछे को धक्का लगता है ii. राकेट मे रखे ईधन के जलने से उतपन्न गैसें तीव्र गति से पीछे की ओर निष्काषित होती हैं तथा इसकी प्रतिक्रिया के फलस्वरूप राकेट ऊपर की ओर गति करता हैl
कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ (Some Important Definitions) 1. दूरी (Distance): किसी दिए गए समयान्तराल में वस्तु द्वारा तय किए गए मार्ग की लंबाई को दूरी कहते हैं। • यह एक अदिश राशि है। • यह सदैव धनात्मक (+ve) होती हैं। • इसका S.I. मात्रक मीटर है। 2. विस्थापन (Displacement): एक निश्चित दिशा में दो बिन्दुओं के बीच की लंबवत दूरी को विस्थापन कहते है। • यह सदिश राशि है। • विस्थापन धनात्मक, ऋणात्मक और शून्य कुछ भी हो सकता है।
3. चाल (Speed): किसी वस्तु के विस्थापन की दर को चाल कहते हैं। अथार्त , चाल = दूरी / समय • यह एक अदिश राशि है। • इसका S.I. मात्रक मीटर/सेकंड है। 4. वेग (Velocity ): किसी वस्तु के विस्थापन की दर को या एक निश्चित दिशा में प्रति सेकंड वस्तु द्वारा तय की दूरी को वेग कहते हैं। • यह एक सदिश राशि है। 6. त्वरण (Acceleration): किसी वस्तु के वेग में परिवर्तन की दर को त्वरण कहते हैं।यदि समय के साथ वस्तु का वेग घटता है तो त्वरण ऋणात्मक होता है, जिसे मंदन (retardation ) कहते हैं। • इसका S.I. मात्रक मी/से2 है।
गुरूत्व (Gravity) कोई भी वस्तु ऊपर से गिरने पर सीधी पृथ्वी की ओर आती है। ऐसा प्रतीत होता है, मानो कोई अलक्ष्य और अज्ञात शक्ति उसे पृथ्वी की ओर खींच रही है। इटली के वैज्ञानिक, गैलिलीयो गैलिलीआई ने सर्वप्रथम इस तथ्य पर प्रकाश डाला था कि कोई भी पिंड जब ऊपर से गिरता है तब वह एक नियत त्वरण (constant acceleration) से पृथ्वी की ओर आता है। त्वरण का यह मान सभी वस्तुओं के लिए एक सा रहता है। पृथ्वी के सतह के निकट किसी पिण्ड के इकाई द्रव्यमान पर लगने वाला पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी का गुरुत्व कहलाता है। इसे g के रूप में निरूपित किया जाता है। यदि कोई पिण्ड धरती के सतह के निकट गुरुत्वाकरण बल के अतिरिरिक्त किसी अन्य बल की अनुपस्थिति में स्वतंत्र रूप से गति कर रही हो तो उसका त्वरण g के बराबर होगा। • इसे g के रूप में निरूपित किया जाता है। • इसका मान लगभग 9.81 m/s2 होता है। • g का मान वस्तु के आकर, पदार्थ, द्रव्यमान आदि पर निर्भर नही करता है।
NOTE – g का मान पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होता है। (g का मान पृथ्वी के केंद्र से दूरी के अनुसार घटता बढ़ता है, अर्थात इस दूरी के बढ़ने पर यह घटता है और दूरी घटने पर बढ़ता है। इसलिए समुद्रतल पर इसका मान अधिक तथा पहाड़ों पर कम होता है। इसी प्रकार भूमध्य रेखा पर इसका मान ध्रुवों की अपेक्षा कम होता है, क्योंकि पृथ्वी ध्रुवों पर कुछ चिपटी है जिसके कारण पृथ्वी के केंद्र से ध्रुवों की दूरी भूमध्यरेखा की अपेक्षा कम है।)
न्यूटन का सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नियम (Newton’s Universal Law Of Gravitation) इसके बाद सर आइज़क न्यूटन ने अपनी मौलिक खोजों के आधार पर बताया कि केवल पृथ्वी ही नहीं, अपितु विश्व का प्रत्येक कण प्रत्येक दूसरे कण को अपनी ओर आकर्षित करता रहता है। दो कणों के बीच कार्य करनेवाला आकर्षण बल उन कणों की संहतियों के गुणनफल का (प्रत्यक्ष) समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होता है। कणों के बीच कार्य करनेवाले पारस्परिक आकर्षण को गुरुत्वाकर्षण (Gravitation) तथा उससे उत्पन्न बल को गुरुत्वाकर्षण बल (Force of Gravitation) कहा जाता है। न्यूटन द्वारा प्रतिपादित उपर्युक्त नियम को न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम (Law of Gravitation) कहते हैं। कभी-कभी इस नियम को गुरुत्वाकर्षण का प्रतिलोम वर्ग नियम (Inverse Square Law) भी कहा जाता है। उपर्युक्त नियम को सूत्र रूप में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है :
मान लिया m1 और संहति वाले m2 दो पिंड परस्पर d दूरी पर स्थित हैं। उनके बीच कार्य करनेवाले बल f का संबंध होगा : यहाँ G एक समानुपाती नियतांक है जिसका मान सभी पदार्थों के लिए एक जैसा रहता है। इसे गुरुत्व नियतांक (Gravitational Constant) कहते हैं। गुरुत्वाकर्षण नियतांक (G): एकांक दूरी पर स्थित एकांक द्रव्यमान के दो वस्तुओं के बीच लगने वाले गुरुत्वाकर्षण बल को गुरुत्वाकर्षण नियतांक कहते हें । G का S.I. मात्रक Nm2kg–2 होता है । G = 6.673×10-11 Nm2kg–2
बल (Force) बल वह बाह्य कारक हैं, जो किसी वस्तु की विरामावस्था, गत्यावस्था, आकार या आकृति में परिवर्तन कर देता है अथवा परिवर्तन करने का प्रयास करता है। SI पद्धति में बल का मात्रक न्यूटन है। इसे संकेत F से प्रदर्शित करते हैं। बल एक सदिश राशि है। दैनिक जीवन में बल के प्रभाव निम्न हैं:- (1) बल स्थिर वस्तु को गत्यावस्था में ला देता है, या लाने का प्रयास करता है। (2) बल वस्तु की गत्यावस्था में परिवर्तन कर देता है, या परिवर्तन करने का प्रयास करता है। (3) बल वस्तु के आकार या आकृति में परिवर्तन कर देता है, या परिवर्तन करने का प्रयास करता है।
बलों के प्रकार ( Types of Forces) 1. पेशीय बल(Muscular force): शरीर की मांसपेशियों द्वारा लगाया गया बल पेशीय बल कहलाता है । मानव एवं अन्य सभी जन्तुओं में पेशीय बल होता है। हम अपने पेशीय बल का उपयोग वस्तु को धकेलने , खींचने , उठाने या धक्का आदि लगाने में करतें हैं। 2. गुरूत्वाकर्षण बल(Gravitational force): जब आप एक पत्थर के टुकडे या पेन को अपने घर की छत से नीचे गिराते हैं , तो वह पृथ्वी के तल पर गिरता है। वास्तव में, पृथ्वी अपना आकर्षण बल उन सभी वस्तुओं पर लगाती है, जिसमें द्रव्यमान होता है। पृथ्वी द्वारा द्रव्यमान वाली वस्तुओं पर लगाया आकर्षण बल 'गुरूत्वाकर्षण बल' कहलाता है।
3. चुम्बकीय बल(Magnetic force) : चुम्बक लोहे से निर्मित वस्तुओं को अपना ओर आकर्षित करता है । जब आप चुम्बक की एक छड़ को लोहे की कीलों या पिनों के पास से जाते हैं तो ये आकर्षित हो जाते हैं। इसका अर्थ यह है कि चुम्बक ने लोहे की कीलों या पिनों पर चुम्बकीय बल लगाया है । 4. विद्युतीय बल(Electrostatic force) : विद्युतीय बल प्लास्टिक की किसी वस्तु को रगड़ने से विद्युतीय आवेश के कारण उत्पन्न होता है। जैसे- एक कंघा या प्लास्टिक का पेन लीजिए। उसे सूखे बालों में थोड़ी देर के लिए रखिए। अब इसे कागज के छोटे छोटे टुकडों के पास ले जाइए। कुछ कागज के टुकडे कंघे या पेन की ओर आकर्षित हो जाते है। अर्थात कंघे या पेन से कागज के टुकडों पर बल लगाया है। 5. घर्षण बल(Frictional force) : वह बल जो किसी वस्तु की गति के विरोध में कार्य करता है , घर्षण बल कहलाता है। घर्षण बल किसी वस्तु की गति का उस समय विरोध करता है, जब दो धरातल एक - दूसरे पर फिसल रहे होते हैं। एक मैदान पर गतिशील गेंद कुछ समय बाद स्वयं ही रूक जाती है, क्योंकि गेंद तथा मैदान के धरातल के बीच घर्षण बल कार्य करता है।
• अपकेंद्रीय बल (centrifugal force): NOTE – • अभिकेंद्रीय बल (centripetal force): जब कोई वस्तु किसी वृत्ताकार मार्ग पर चलती है, तो उस पर एक बल वृत्त के केंद्र की ओर कार्य करता है. इस बल को अभिकेंद्रीय बल कहते हैं. इस बल के अभाव में वस्तु वृत्ताकार मार्ग पर नही चल सकती है. यदि कोई m द्रव्यमान का पिंड v चाल से r त्रिज्या के वृत्तीय मार्ग पर चल है, तो उस पर कार्यकारी वृत्त के केंद्र की ओर आवश्यक अभिकेंद्रीय बल f = m v^2/ r होता है. • अपकेंद्रीय बल (centrifugal force): अजड़त्वीय फ्रेम (non -inertial frame) में न्यूटन के नियमों को लागू करने के लिए कुछ एसे बलों की कल्पना करनी होती है, जिन्हें परिवेश में किसी पिंड से संबंधित नही किया जा सकता. ये बल छद्म बल या जड़त्वीय बल कहलाते हैं. अपकेंद्रीय बल एक ऐसा ही जड़त्वीय बल या छद्म बल है. इसकी दिशा अभिकेंद्री बल के विपरीत दिशा में होती है. कपडा सूखाने की मशीन, दूध से मक्खन निकालने की मशीन आदि अपकेंद्रीय बल के सिद्धांत पर कार्य करती हैं.
NOTE – • संतुलित बल (Balanced Force) किसी वस्तु पर लगने वाले बलों का परिणामी शून्य हो तथा वे वस्तु की स्थिति या गति में कोई परिवर्तन नहीं करते हो, तब इन्हें संतुलित बल कहते हैं । संतुलित बल में बलों के परिमाण समान तथा दिशा विपरीत होती है । • असंतुलित बल (Unbalanced Force) अगर किसी वस्तु पर लगनेवाले बलों के समूह का परिणामी मान शून्य न हो, तब इन्हें असंतुलित बल कहते हैं । असंतुलित बल किसी वस्तु में गति उत्पन्न करता है या गति में परिवर्तन ला सकता है ।
बल के मात्रक (Units Of Force) डाइन—'सेण्टीमीटर–ग्राम–सेकेण्ड' में बल का मात्रक डाइन (Dyne) कहलाता है। 1 डाइन = 1 ग्राम–सेमी./सेकेण्ड2 न्यूटन—'मीटर–किग्रा. सेकेण्ड' पद्धति (SI पद्धति) में बल का मात्रक न्यूटन (Newton) कहलाता है। 1 न्यूटन = 1 किग्रा.–मीटर/सेकेण्ड2 1 न्यूटन = 105 डाइन
जड़त्व (Inertia) किसी वस्तु का वह गुण जिसके कारण वह अपनी विरामावस्था या गत्यावस्था में स्वतः ही परिवर्तन करने में असमर्थ होती है, उसका जड़त्व कहलाता है। जड़त्व दो प्रकार के होते हैं:- 1. विराम का जड़त्व: यदि कोई वस्तु स्थिर है तो स्थिर ही रहेगी, जब तक कि उस पर कोई बाह्य बल न लगाया जाये। वस्तु के इस गुण को विराम का जड़त्व कहते हैं। 2. गति का जड़त्व: यदि कोई वस्तु चल रही है तो वह उसी वेग से उसी दिशा में तब तक चलती रहेगी, जब तक कि उस पर कोई बाह्य बल न लगाया जाय। वस्तु के इस गुण को गति का जड़त्व कहते हैं।
विराम के जड़त्व के उदाहरण:- (1) मोटरकार के एकाएक चलने पर उसमें बैठा व्यक्ति पीछे की ओर गिर जाता है। (2) एक गिलास के ऊपर कार्ड तथा कार्ड के ऊपर सिक्का रखकर यदि कार्ड को तेजी से धक्का दिया जाये तो सिक्का गिलास में गिर जाता है। (3) कम्बल को छड़ी से पीटने पर धूल के कण झड़ जाते हैं। (4) पेड़ को हिलाने पर उसमें लगे फल नीचे गिरने लगते हैं। (5) बन्दुक की गोली से खिड़की की काँच में स्पष्ट छेद बन जाता है, काँच चटकता नहीं, किन्तु पत्थर मारने से काँच चटक जाता है।
संवेग (Linear Momentum) संवेग किसी वस्तु की गति की कुल मात्रा का माप है।किसी वस्तु के द्रव्यमान और वेग के गुणनफल को उस वस्तु का संवेग कहते हैं। सूत्र के रूप में , संवेग = द्रव्यमान × वेग SI पद्धति में संवेग का मात्रक किग्रा मीटर प्रति सेकण्ड तथा cgs पद्धति में ग्राम सेमी प्रति सेकण्ड है। संवेग सम्बन्धी तथ्य― (1) यदि दो वस्तुएँ समान वेग से चल रही हैं तो भारी वस्तु का संवेग हल्की वस्तु के संवेग से अधिक होता है। (2) यदि दो वस्तुओं का संवेग एकसमान है तो हल्की वस्तु का वेग भारी वस्तु के वेग से अधिक होता है।
संवेग संरक्षण का सिद्धांत (Principle of Conservation of linear Momentum) बाह्य बल के अनुपस्थिति में वस्तु या वस्तुओं के समूह का कुल संवेग नियत अर्थात् संरक्षित रहता है । जब, F = 0, p1 = P2 , mv = mu
आवेग / बल का आवेग (Impulse) जब कोई बल किसी वस्तु पर अल्प समयान्तराल के लिए लगाया जाता है तो बल और समयान्तराल के गुणनफल को बल का आवेग कहते हैं। बल का आवेग वस्तु के संवेग में परिवर्तन के बराबर होता है।सूत्र के रूप में, बल का आवेग = बल × समयान्तराल SI पद्धति में आवेग का मात्रक न्यूटन-सेकण्ड है तथा cgs पद्धति में डाइन – सेकण्ड है।’ दैनिक जीवन में आवेग के उदाहरण लिखिए।’,’दैनिक जीवन में आवेग के उदाहरण:- (1)क्रिकेट के खेल में तेजी से आती हुई गेंद को पकड़ते समय खिलाड़ी अपने हाथ पीछे की ओर खींचता है। (2) कुछ ऊँचाई से पक्के फर्श की अपेक्षा कच्चे फर्श पर कूदने से कम चोट लगती है। पक्के फर्श पर कूदने से पैर फौरन स्थिर हो जाते हैं। (3) सर्कस के कलाकार जाली ता मोटे गद्दे पर कूदते हैं। (4) काँच या मिट्टी के बर्तन पक्की जमीन पर गिरते ही टूट जाते हैं, किन्तु मुलायम फर्श पर गिरने पर नहीं टूटते।
घर्षण बल (frictional force)
1. स्थैतिक घर्षण बल(Static friction) यदि लकड़ी का बड़ा गुटका ज़मीन पर रखा हो और उसे खिसकाने के लिए बल लगाया जाए तो वह नहीं खिसकता। अतः दोनों सतहों के मध्य एक घर्षण बल कार्य करता है। इस घर्षण बल को ही स्थैतिक घर्षण बल कहा जाता है। इसका परिमाण लगाए गए बल के बराबर तथा दिशा बल के विपरीत होती है। स्थैतिक घर्षण के नियम है: • लिमिटिंग घर्षण की मात्रा संपर्क में आने वाली दो सतहों की पॉलिश की प्रकृति और स्थिति पर निर्भर करती है l • जब तक सामान्य प्रतिक्रिया समान बनी रहती है, लिमिटिंग घर्षण की मात्रा संपर्क में आने वाली सतहों के क्षेत्रफल और आकार से स्वतंत्र हेाती है l • लिमिटिंग घर्षण' F' की मात्रा संपर्क में आने वाली दो सतहों के बीच सामान्य प्रतिक्रिया ' R' से सीधे समानुपातिक होती है l
F ∝ R F = µR जहां µ को घर्षण का गुणांक कहा जाता है.यह 'संपर्क में आने वाली सामग्री के प्रकार पर आधारित घर्षण की माप है l इसलिये, घर्षण का गुणांक, µ = F/R
स्थैतिक घर्षण, घर्षण का वह प्रकार है जो विराम की स्थिति में दो वस्तुएं जब एक-दूसरे को स्पर्श करती हैं तो मौजूद रहता है l इसका लिमिटिंग घर्षण नामक लिमिटिंग मान होता है जो विराम की स्थिति से पिंड को स्थानांतरित करने के लिए आवश्यक कम से कम बल के बराबर होता हैl जब बाहरी बल F बढ़ जाता है तो वह स्तर आता है जब पिंड बस गति करने के कगार पर होता है, इस स्तर पर, घर्षण का बल अधिकतम पर होता है, और इसे लिमिटिंग घर्षण कहा जाता है l
2. गतिज घर्षण बल (Kinetic Friction) जब कोई वस्तु किसी धरातल पर सरकती है तो सरकने वाली वस्तु तथा धरातल के मध्य लगने वाला घर्षण बल, गतिज घर्षण बल कहा जाता है। जैसे—बिना पहिए की किसी गाड़ी को ज़मीन पर खींचने पर गाड़ी तथा ज़मीन के बीच लगने वाला बल गतिज घर्षण बल होता है।
घर्षण के लाभ : घर्षण हमारे दैनिक जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। घर्षण के बिना हम बाधा हैं। 1. घर्षण की वजह से ही हम सड़क पर चल फिर सकते है । जब हम किसी चकनी सतह पर जाते है तो हम फिसल कर गिर जाते है क्योकि चिकनी सतह और हमारे पांव के बिच घर्षण कम होता है बर्फ पर भी कम घर्षण के कारण चलना मुश्किल हो जाता है। 2. एक घोड़ा गाड़ी नहीं खींच सकते हैं जब तक कि घर्षण उसे एक सुरक्षित पैर जमाने में सहायता न करे 3. चाक और ब्लैक बोर्ड, पेन और कागज के बिच घर्षण के कारन ही लिखना, ड्राइंग बनाना संभव हो पता है 4. दियासिलाई की तीली केवल तीली और डिब्बी के खुरदुरे के बिच घर्षण के कारन ही जलती है 5. वाहन के ब्रेक भी केवल घर्षण के कारण ही कार्य करते है l
घर्षण बल की हानिया: 1. घर्षण बल के कारण मशीनों के कल पुर्जे घिसते है 2 घर्षण बल की हानिया: 1. घर्षण बल के कारण मशीनों के कल पुर्जे घिसते है 2. घर्षण बल के कारण ही मशीनों की दक्षता कम हो जाती है 3. घर्षण बल के कारण ही मशीनों को दिया गया ऊर्जा का कुछ भाग ऊष्मा के रूप में व्यय हो जाता है