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विश्वशांति अभियान हसमुख पटेल
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इस ‘अमृत धारा’ के प्रणेता स्व.श्री मनुभाई पंचोली ‘दर्शक’ के
हम कृतज्ञ हैं इस ‘अमृत धारा’ के प्रणेता स्व.श्री मनुभाई पंचोली ‘दर्शक’ के जिनके अनुभव से यह ज्ञान – अमृत सृजित हुआ है ।
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विश्वशांति अभियान बच्चा बड़ा प्रभावक्षम होता है । बचपनकी घटनाओं और अनुभवो का उस पर स्थायी असर पड़ता है । वह उस असर से पूर्ण रूप से कभी मुक्त नहीं हो सकता । बचपन मे बच्चा हिंसा का अनुभव करता है तो वह बड़ा होकर समाज को हिंसा ही वापस देता है । बचपन मे झूठ पाता है तो झूठ सीखता है । बचपन मे वह प्यार पाता है तो बड़ा होकर के वह समाज को प्यार ही वापस करता है ।
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विश्वशांति अभियान बचपन मे हम जो बोते हैं वही वटवृक्ष होकर हमें वापस मिलता है । बचपन मे नौकरानी रंभा ने अँधेरे से डरने वाले मोहनदास करमचंद गांधी को रामनाम सिखाया । वह राम-नाम अंतिम श्वास तक उनके साथ रहा । बचपन मे राजा हरिश्वंद्र की फिल्म से गांधीजी सत्य सीखे । इसी लिए वे आजीवन सत्य के पुजारी रहे ।
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विश्वशांति अभियान मोहनदास ने एक बार घर मे रखे गहनों में से सोने की चेन चुराई थी । बाद में जब उन्होंने सत्यवादी हरिश्चंद्र फिल्म देखी तो उस फिल्म का उनके उपर गहरा असर हुआ । परिणामत: उन्होने ऐसा सच बोलना व्यावहारिक न होते हुए भी अपने पिता को उस चोरी को कबूल करते हुए आत्म ग्लानि से भरी मार्मिक चिठ्ठी लिखी । उस चिठ्ठी से उनके पिता इतने अभिभूत हो उठे कि उन्होंने अपने प्यारे बेटे को एक भी शब्द न बोला ।
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विश्वशांति अभियान उलटे अपने अश्रु बिंदुओ से पुत्र को भिगोते रहे । उस दिन पुत्र मोहनदास गांधी सच्ची अहिंसा सिखता है । बाद मे इतने बड़े ब्रिटिश शासन को अहिंसा के ही माध्यम से देश निकाला है । क्योंकी उनके पास अहिंसा के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं था ।
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विश्वशांति अभियान गांधीजी की माता घर्मपारायण थीं और कठिन व्रत और उपवास करती थीं । गांधीजीने बचपनमे अपनी माँ से जो पाठ सीखा उसे आजीवन एक सफल अस्त्र के रुपमे प्रयोग किया । सर्व प्रथम हम यह विचार करें कि बच्चे में हम क्या बोना चाहते हैं । प्यार या हिंसा ? या फिर विश्व विनाशक त्रासवाद अथवा विश्वशांति ?
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हिंसा के प्रकार - स्थूल हिंसा - मार पीट - सूक्ष्म हिंसा
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स्थूल हिंसा के कारण (1) एसा मानना कि बच्चा नासमझ होता है । पिटने से ही वह सीधा होता है । पिटना उसके भले के लिए होता है । (2) अभिभावक के तनावों का भोग दर्दनाक पिटाई के रुपमें अबोध और कोमल मन बच्चा भोगता है । (3) बच्चा निर्बल है बडों की हिंसा का सामना नही कर सकता । इसीलिए वह सोफ्ट टार्गेट होता है । हम जिस गलती के लिये बडों को नहि मारते उसी गलती के लिये बच्चा अनूकश: पिटता है । (4) हम इतने संवेदनहीन होते हैं कि बच्चे की दुनिया में जाकर झाँक ही नही सकते कि पिटाई से उसे कितनी पीडा होती है ।
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स्थूल हिंसा के कारण बचपन में हम पर हुई मारपिटाई से हम गलत पाठ सीखते हैं । उस वक्त हम पर क्या बीतती थी वह वर्तमान में नहीं है । बल्कि ऐसा मान लेते हैं कि उस पिटाई से ही हम में सही अनुशासन आया और हमारा संतुलित विकास हुआ । बालमानस के प्रति सही बर्ताव न तो हम जानते हैं और न जानना चाहते हैं - बालमानस की सही परवरिश करने के अहिंसक तरीके ढूँढ निकालने के प्रयास हम नहीं करते ।
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स्थूल हिंसा के कारण (7) हम यह समझ ही नहीं पाते की अनुसाशन अंदर से उगने की चीज है । यह बाहर से नहीं बोया जा सकता । अत: मारपिटाइ जैसे बाहरी उपाय से अनुशासन बिल्कुल नही जगता, उलटे डर पैदा होता है । (8) डर से अनुशासन नहीं जागता अनुशासन का आभास भर होता है । (9) बच्चों की परवरिश - धैर्य अनुशासन और कुशलता मांगती है । खूद में अनुशासित होने का कठिन मार्ग न अपनाकर, हम मारपिटाई का आसान लगता रास्ता अपनाकर बच्चेंमें अनुशासनका आभास देखकर हम संतुष्ट हो लेते है ।
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स्थूल हिंसा के कारण (10) क्या खुद अनुशासित न होकर बच्चें में अनुशासन की अपेक्षा करना उचित है ? (11) खुद अनुशासित न होने से हम प्रतिक्रियात्मक होकर न चाहकर भी बच्चे को मार बैठते है । (12) मारपिटाई के दूरगामी परिणामों से हम बेखबर हैं ।
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स्थूल हिंसा के कारण बच्चों को पीटना गैरकानूनी है । संज्ञेय अपराध है । इस कानून को कार्यक्षम तरीके से लागू न करने के कारण समाज इस कानून के बारे में जानता ही नहीं हैं । (14) गरीबी, अज्ञानता और बेरोजगारी का भोग बच्चे बनते हैं । ऐसे घरों में बच्चों की मारपिटाई आम बात है ।
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सूक्ष्म हिंसा बच्चों को रोकने टोकने, उनको डर और दबाव में रखने से बच्चा कुंठित हो जाता है ?
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सूक्ष्म हिंसा के कारण माँ बाप, शिक्षक और समाज की अनगनित अपेक्षाएँ । (2) बच्चें में पड़ी अनंत प्रतिभाएँ और क्षमताएँ पहचानने की और उनको पोषित करने की क्षमता का शिक्षकों और माँ बाप में अभाव । (3) सूक्ष्म हिंसा के दूरगामी परिणामों से बेखबर माँ बाप और शिक्षक । (4) बच्चे को अंदर से जगाना, उसमें पड़ी अनंत ऊर्जा और क्षमताओं से उसको परिचित करना ही शिक्षा है ।
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सूक्ष्म हिंसा के कारण (5) शिक्षा की इस मूलभूत विभावना को न समझकर केवल भौतिक परिणामों को ही शिक्षा मानना । (6) शिक्षा में सूचनाओं (Informations) और कुशलताओं (Skills) पर ही जोर । बच्चे में मूल्यनिष्ठा जगाने वाले शिक्षा के मुख्य कर्तव्य को भूल जाना । (7) अभिभावकों और शिक्षकों में केवल परिणाम पाने के लिए स्पर्धा की चिंता । केवल नकारात्मक तरीके से देखें तो दूसरों को गिराकर आगे बढ़ने की ही शिक्षा हम देना चाहते हैं । यह सोच और उससे जन्मती प्रक्रिया बच्चे के लिये काफी पीड़ादायक है ।
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सूक्ष्म हिंसा के कारण हम बच्चों को डॅाक्टर या इन्जीनियर बनाना चाहते हैं । हम ये भूल जाते हैं कि हर बच्चा डॅाक्टर या इन्जीनियर बनने के लिये नहीं जन्मा हैं । हम ये नहीं समझते कि कुदरत इस सृष्टि में कोई एक जैसी चीज नहीं बनाता है । इस दृष्टि से हर बच्चा विशिष्ट है । इस विशेषता को पहचानें और उसे स्वीकार करें तो बच्चे को किसी और के साथ अनावश्यक स्पर्धा करने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी ।
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सूक्ष्म हिंसा के कारण इस समझ के अभाव में तथाकथित स्पर्धा में हम खुद तो दौडते-हांफते ही हैं, साथ ही बच्चों को भी दौड़ाते- हँफाते हुए उनसे उनका बचपन असमय छीन लेते हैं । किसी शायर ने ठीक ही कहा है – छोटे-छोटे हाथों को बस चाँद सितारे छूने दो चार किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे । हो सकता है कि इस अनावश्यक स्पर्धा में हम कामयाब हो जाएँ । लेकिन कहीं ऐसा न हो कि इस धींगामुश्ती में हम सच्चे जीवन का असली आनंद ही खो बैठें।
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सूक्ष्म हिंसा के कारण (9) बच्चे में पड़ी विशेषताओं को पहचान कर उन्हें विकसित करने की क्षमता का शिक्षकों और अभिभावकों में अभाव ।
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सूक्ष्म / स्थूल हिंसा के परिणाम
(1) बच्चा डरपोक हो जाता है । (2) डर के मारे वह झूठ बोलना सीखता है । (3) बड़ा होकर वह मिथ्याभाषी और भ्रष्टाचारी बन सकता है । (4) डरपोक व्यक्ति सच के रास्ते पर चल ही नहि सकता । (5) हमें आज समाज में हमें निडर व्यक्ति कम ही देखने को मिलते हैं क्योंकी हम में से अधिकांश की निर्भयता तो बचपन में ही हमारे अभिभावको के द्वारा कुचल दी गई होती हैं ।
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सूक्ष्म / स्थूल हिंसा के परिणाम
(6) इस लीये हमारे समाज में निर्बलता और असहायता बड़े पैमाने पर देखने को मिलती है। (7) बच्चा विद्रोही हो जाता है । (8) बड़ा हो कर वह किसी की भी नहीं सुनता - स्वच्छंदी हो सकता है । बच्चों में मौजूद क्षमता/संभावना कुंठित हो जाती है ( मुरझा जाती है ) और इसके लाभ से समाज वंचित रह जाता है ।
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सूक्ष्म / स्थूल हिंसा के परिणाम
सूक्ष्म / स्थूल हिंसा के परिणाम (10) बचपन में असहायता अनुभव करने वाला बच्चा बड़ा होकर भी असहाय ही रहता है । वह समस्याओं का सामना नहीं कर सकता । वह केवल फरियादी बन कर बैठा रहता है । (11) शिक्षकों और माँ -बाप के प्रति बच्चे के मन में आदर की जगह घृणा पैदा होती है । (12) बच्चा हमें आदर न करता हो तो हम उसे हम यह जबरन सिखा नहीं सकते यानी उसे अचानक बदल नहीं सकते ।
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सूक्ष्म / स्थूल हिंसा के परिणाम
(13) बच्चा प्रतिक्रियात्मक होता है । (14) बच्चा तनाव में जीता है । तनाव की वजह से बड़ा होकर वह रोग का भोग बन सकता है ।
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बालहिंसा असत्य मिथ्या भाषण भ्रष्टाचार संवेदनहीनता असहायता निर्बलता
हिंसा / त्रासवाद प्रतिक्रियात्मकता विद्रोही/स्वभाव स्वच्छंदता भय बालहिंसा
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परिणाम हिंसा : (1) माँ-बाप और शिक्षकों के साथ युवकों का दुर्व्यवहार ।
(1) माँ-बाप और शिक्षकों के साथ युवकों का दुर्व्यवहार । (2) पत्नी और बच्चों के साथ हिंसा । (3) परिवार में अशांति / हिंसा । (4) वृद्धाश्रम । (5) छोटी-छोटी बातों में झगड़े और हिंसा पर उतर आना । (6) हिंसा / त्रासवाद / युद्ध ।
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परिणाम संवेदनहीनता शिक्षकों और माँ-बाप की बच्चों के प्रति संवेदनहीनता । सरकारी तंत्र की संवेदनहीनता । - समाज में व्यापक संवेदनहीनता ।
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परिणाम भय - समाज में व्याप्त भय । असत्य / अप्रमाणिकता
असत्य / अप्रमाणिकता - निडरता के बिना सत्य व्यक्त नहीं हो सकता ।
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मैं क्या कर सकता हूँ ? शिक्षक
किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं करने की प्रतिज्ञा लूँ उसका पालन करने के लिये योग्यता प्राप्त करूँ - इसके लिये सीखूँ । - उसके लिये प्रयोग करूँ । - सफल प्रयोग दूसरों को बताऊँ ताकि वह भी प्रेरित हो । - विफल प्रयोगों से खुद सीखूँ । - बच्चे को समझने की कोशिश करूँ ।
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मैं क्या कर सकता हूँ ? - इस माध्यम से सीखता रहूँ ।
- जिम्मेदारी ही अनुशासन का स्रोत है वह समझूँ । - बच्चों को खुद जिम्मेदार बनाके उनको अनुशासित करुँ । - बच्चों को प्रोत्साहित करके अनुशासित करुँ सपने केवल वही नहीं होते जो सोते वक्त आते हैं सच्चे सपने तो वे होते हैं जो सोने ही नहीं देते । - अहिंसामुक्त रहने के लिए दूसरे शिक्षकों को सहायता करुंगा ।
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मैं क्या कर सकता हूँ ? - उनको प्यार से समझाऊँगा/ प्रोत्साहित करुँगा ।
- उनको प्यार से समझाऊँगा/ प्रोत्साहित करुँगा । - उसमें विफल होने पर उनसे घृणा नही करुंगा । - बच्चे में शेष रही ऊर्जा से अभिभूत हूंगा । - उनमें मौजूद प्रतिभा को पहचानने की कोशिश करूंगा । - उनको व्यक्त होने का अवसर दूंगा । - मेरा काम माली का है, प्रजापति का नही यह बात हमेशा याद रखूंगा । - प्रेम और ज्ञान से बच्चों को जीतूंगा । - सतत सीखते रहकर शिक्षक के रूप में अपनी योग्यता बढा़ता रहूंगा ।
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मैं क्या कर सकता हूँ ? बच्चों को विकसित करने के लिये, उनको आगे बढा़ने के लिए हिंसा कभी सही राह नहीं हो सकती । अपनी गलती के विषय में किसी की निंदा या पछतावा करने की जगह उससे सीखने का उत्साह रखूंगा । उत्तर नहीं मिलने पर बच्चों के साथ क्या करुँ ? मैं उलझ गया हूं । ऐसे संकट काल में मैं अपने बचपन के अनुभव और पीड़ा को याद करुंगा । - बालमानस की सच्ची किताब पढूंगा ।
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मैं क्या कर सकता हूँ ? - और कोई कार्य करूँ या न करूँ पर बच्चे को बिना कोई चूक किए जरूर पढूंगा । हमेशा याद रखूंगा कि हिंसा से किसी का भला नहीं हो सकता । - बच्चों के साथ हिंसा का प्रयोग न करने के लिये अभिभावकों को भी समझाऊँगा, उनको शिक्षित करूंगा । अपनी प्रतिक्रियात्मकता कम करने के लिये हमेशा प्रयत्नशील रहूंगा । - उसके लिये विपश्यना जैसे ध्यान मार्ग अपनाऊँगा और साथ में अन्य मार्ग ढूंढ़ता रहुंगा ।
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जो आचरण में लाए वही आचार्य है ।
मैं क्या कर सकता हूँ ? आचार्य जो आचरण में लाए वही आचार्य है ।
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मैं क्या कर सकता हूँ ? प्रधानाचार्य :
- अहिंसा को विद्यालय की मुख्य नीति घोषित करें । - उसके अमल के लिए विद्यालय में सुंदर वातावरण का सृजन करें । - शिक्षकों को समझायें, उनकी सहायता करें । - ऐसा न मानने वालों के साथ कानून और नियम से काम लें । - इस सिद्धांत के मुताबिक काम करने वालों का सामूहिक सन्मान करें । - अभिभावकों को समझायें, उनको शिक्षित करें । - अहिंसा के सिद्धांत में विद्यार्थियों को भी दीक्षित करें। - विद्यालय में जन जागृति के कार्यक्रम आयोजित करें ।
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मैं क्या कर सकता हूँ ? अभिभावक / माता-पिता
- अहिंसा के सिद्धांत को समझें । - उसके दुष्परिणामों को समझें । - बच्चों के सामने यह प्रतिज्ञा लें कि हम उनके साथ कभी मारपीट नहीं करेंगे । - इस प्रतिज्ञा का पूर्णरूप से पालन करने की कोशिश करें । - प्रतिज्ञाभंग होने पर बच्चे से निस्संकोच भाव से माफी मांगें और दूसरी बार ऐसा न करने का वचन भी दें । - आगे से बच्चे की जगह अपने को रख कर देखे फिर उसके प्रति कोई आचरण करें ।
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मैं क्या कर सकता हूँ ? अपने बचपन और उसकी पीडा को पुन: महसूस करके देखें । - गुस्सा और प्रतिक्रियात्मकता से छुटकारा पाने के लिये विपश्यना जैसे ध्यान मार्ग अपनाएँ । - बच्चों के परवरिश पर आधारित पुस्तकें पढें । खास करके अपने बच्चों को ( जो स्वयं जीवंत पुस्तकें होते हैं ) ही पढें, उनको समझने की कोशिश करें । - अन्य अभिभावकों से भी अच्छी बातें सीखने की कोशिश करें । - परवरिश के बारे में लगातार कुछ न कुछ सीखते रहें।
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मैं क्या कर सकता हूँ ? एक प्रतिज्ञा
मैं यह कभी नहीं भूलूंगा कि बच्चा शुद्ध रूप में एक अनंत संभावना होता है – वह पूर्ण रूप से व्यक्त हो उसके लिये हमेशा कोशिश करता रहूंगा।
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धन्यवाद
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